मुरली मोहिनी
बैठे हरि राधासंग, कुंजभवन अपने रंग
मुरली ले अधर धरी, सारंग मुख गाई
मनमोहन अति सुजान, परम चतुर गुन-निधान
जान बूझ एक तान, चूक के बजाई
प्यारी जब गह्यो बीन, सकल कला गुन प्रवीन
अति नवीन रूप सहित, तान वही सुनाई
‘वल्लभ’ गिरिधरनलाल, रीझ कियो अंकमाल
कहन लगे नन्दलाल, सुन्दर सुखदाई 

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