भगवान बुद्ध
भगवान् बुद्ध करुणावतार
वास्तविक भाव जो वेदों का, हम जीवन जिये उस प्रकार
जीवों की हत्या के द्वारा, यज्ञों से पूर्ण कामना हो
पाखण्ड, दम्भ इनसे न कभी हित कैसे किसका संभव हो
हम आड़ धर्म की लेकर के, भटकाते अपने स्वयं को ही
दु:ख का कारण ही तो तृष्णा, हो विरक्ति, शांति तो सुलभ यहीं 

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