कर्तव्य निष्ठा
चाहे पूजा पाठ स्तवन हो, सब नित्य कर्म के जैसा ही
मन में श्रद्धा तन्मयता हो, तब उपादेय होता वोही
हम आँखे खोल तनिक देखें, कुछ भला कार्य क्या कर पाये
बस माया मोह में फँसे रहे, दिन रात यूँ ही बीता जाये
पूजन में जो नहीं बसे देव तो उसे छोड़ कर गये कहाँ
जहाँ दीन हीन बसते किसान, जोते जमीन वे रहे वहाँ
गर्मी की तेज तपन में वे, जी तोड़ परिश्रम करते हैं
करते वे घोर तपस्या ही और दान अन्न का देते हैं
मैं समझ गया वे लोग सभी जो कर्मयोग अपनाते हैं
सत्कर्म करें निस्वार्थ जभी, प्रभु योग-क्षेम तब करते हैं

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