श्रीकृष्ण माधुरी
देखा देखा यशोदा तेरा लाल मैंने देखा
कस्तूरी का तिलक बिराजे, उर पचरंगी माल
मोर पखा सिर ऊपर सोहे, घूँघर वारे बाल
पीताम्बर को कटि में धारे, काँधे कारी शाल
कानों में तो कुण्डल सोहे और लालिमा गाल
चरणों में नुपूर छमकाये, चले लटकनी चाल
यमुना तट पे रास रचाये, नाचे दे-दे ताल
मन्द-मन्द मुस्कान अधर पर गोपियन करे निहाल
अंग-अंग की छबि निराली, सुन्दरता को जाल

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