सुदामा से भेंट
देखत श्याम हँसे, सुदामा कूँ देखत श्याम हँसे
फाटी तो फुलड़ियाँ पाँव उभाणे, चलताँ चरण घसे
बालपणे का मीत सुदामा, अब क्यूँ दूर बसे
कहा भावज ने भेंट पठाई, ताँदुल तीन पसे
कित गई प्रभु मेरी टूटी टपरिया, माणिक महल लसे
कित गई प्रभु मेरी गउअन बछियाँ, द्वार पे सब ही हँसे
‘मीराँ’ के प्रभु हरि अविनासी, सरणे तोरे बसे

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