गोपियों का प्रेम
ग्वालिन तब देखे नँद-नंदन
मोर मुकुट पीताम्बर काचे, खौरि किये तनु चन्दन
तब यह कह्यो कहाँ अब जैहौं, आगे कुँवर कन्हाई
यह सुनि मन आनन्द बढ़ायो, मुख कहैं बात डराई
कोउ कोउ कहति चलौ री जाई, कोउ कहै फिरि घर जाई
कोउ कहति कहा करिहै हरि, इनकौ कहा पराई
कोउ कोउ कहति काल ही हमको, लूटि लई नन्दलाला
‘सूर’ श्याम के ऐसे गुण हैं, घरहिं फिरो ब्रजबाला

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