प्रबोधन
हरि बिनु मीत नहीं कोउ तेरे
सुनि मन, कहौं पुकारी तोसौं, भजो गोपालहिं मेरे
यह संसार विषय-विष सागर, रहत सदा सब घेरे
‘सूर’ श्याम बिन अंतकाल में, कोई न आवत नेरे

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