नाम स्मरण
हरि हरि हरि हरि सुमिरन करौ, हरि-चरनार-विंद उर धरौ
हरि की कथा होइ जब जहाँ, गंगा हूँ चलि आवै तहाँ
जमुना सिन्धु सरस्वति आवैं, गोदावरी विलम्ब न लावैं
सर्व-तीर्थ को वासा तहाँ, ‘सूर’ हरि-कथा होवै जहाँ

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