समदृष्टि
जय हार किसी के हाथ नहीं
जब विजय प्राप्त हो अपने को, ले श्रेय स्वयं यह ठीक नहीं
हम तो केवल कठपुतली हैं, सब कुछ ही तो प्रभु के वश में
है जीत उन्हीं के हाथों में और हार भी उनके हाथों में
जब मिलें पराजय अपयश हो, पुरुषार्थ हमारा जाय कहाँ
हो हार जीत समदृष्टि रहे, नारायण की हो कृपा वहाँ

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