मुरली मोहिनी
जब मुरली बजायें मुरलीधर, उसके स्वर में हो मग्न सभी
पशु पक्षी सभी सुन कर वंशी, वे कान लगायें उसी ओर
मृग पत्नी सहित गौएँ बछड़े, निस्तब्ध चकित होए विभोर
अधरामृत मुरली पान करे, स्वर उसमें भरते श्याम जभी
सहचरी श्याम की है मुरली, वे नहीं छोड़ते उसे कभी
इसने मन मोह लियासब का, शिव ब्रह्मा देव देवियों का
गोपीजन मोहन से मिलने, दौड़ी न ध्यान मर्यादा का
वंशी का भाग्य भला देखो, अधरों पे इसको धरे श्याम
तन्मय हो कर सब श्रवण करें, बजता है जब संगीत साम

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