मोह माया
जग में जीवत ही को नातो
मन बिछुरे तन छार होइगो, कोउ न बात पुछातो
मैं मेरो कबहूँ नहिं कीजै, कीजै पंच-सुहातो
विषयासक्त रहत निसि –वासर, सुख सियारो दुःख तातो
साँच झूँट करि माया जोरी, आपन रूखौ खातो
‘सूरदास’ कछु थिर नहिं रहई, जो आयो सो जातो

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