Jagat Se Prabho Ubaro

शरणागति
जगत से प्रभो उबारो
हे घट घट वासी, मैं पापी, मुझको आप सँभारो
मुझे विदित है तुम सेवक के, दोष नहीं मन लाते
ग्वाल-बाल संग क्रीड़ा करते, गाय चराने जाते
तुम को प्यार गरीबों से प्रभु, साग विदुर घर खाते
शबरी, सुदामा, केवट को, प्रभु तुम ही हो अपनाते
तार दिया तुमने भव जल से, अजामील गणिका को
मुझे आसरा एक तुम्हारा, पार लगा दो मुझको 

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