भोजन माधुरी
जेंवत कान्ह नन्द इक ठौरे
कछुक खात लपटात दोउ कर, बाल केलि अति भोरे
बरा कौर मेलत मुख भीतर, मिरिच दसन टकटौरे
तीछन लगी नैन भरि आए, रोवत बाहर दौरे
फूँकति बदन रोहिनी ठाड़ी, लिए लगाइ अँकोरे
‘सूर’ स्याम को मधुर कौर दे, कीन्हे तात निहोरे

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