बालकृष्ण को जिमाना
जेंवत कान्ह नन्दजू की कनियाँ
कछुक खात कछु धरनि गिरावत, छबि निरखत नँद–रनियाँ
बरी, बरा, बेसन बहु भाँतिन, व्यंजन विविध अँगनियाँ
आपुन खात नंद-मुख नावत, यह सुख कहत न बनियाँ
आपुन खात खवावत ग्वालन, कर माखन दधि दोनियाँ
सद माखन मिश्री मिश्रित कर, मुख नावत छबि धनियाँ
जो सुख महर जसोदा बिलसति, सो नहिं तीन भुवनियाँ
भोजन करि अचमन जब कीन्हों, माँगत ‘सूर’ जुठनियाँ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *