हरि-भजन
जो भजे हरि को सदा, सोई परमपद पायेगा
देह के माला तिलक अरुछाप नहीं कुछ काम के
प्रेम भक्ति के बिना नहीं, नाथ के मन भायेगा
दिल के दर्पण को सफा कर, दूर कर अभिमान को
शरण जा गुरु के चरण में, तो प्रभु मिल जायेगा
छोड़ दुनियाँ के मजे सब, बैठकर एकांत में
ध्यान धर हरि की छबि का, फिर जनम नहीं पायेगा
दृढ़ भरोसा करके मन में, जो जपे हरि नाम को
कहत ‘ब्रह्मानंद’ तब आवागमन मिट जायेगा

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