नाम स्मरण
जो रहे वासना अन्त समय, वैसी ही गति को प्राप्त करे
श्रीराम कृष्ण को स्मरण करे, सद्बुद्धि वही प्रदान करे
सम्बन्धी कोई पैदा हो या मर जाये, निर्लिप्त रहें
गोपीजन का श्रीकृष्ण प्रेम आदर्श हमारा यही रहे
कन्या ससुराल में जाती है, मैके से दूर तभी होये
जो प्रभु से लौ लग जाये तो, लौकिक नाते सब मिट जाये 
जीव जो शासन करे इन्द्रियों पर, वह ही तो जीव कहाता है
यह कर्म करे फल को भोगे, वह जन्म मृत्यु को पाता है
मन-बुद्धि चित्त व अहंकार जैसे ही देह ग्रहण करता
तो आत्मा जिसको कहें शास्त्र, जीवात्मा वही है कहलाता
यह जीव अविद्या के कारण, सम्बन्ध इन्द्रियों से करता
आबद्ध वही तब हो जाता, सुख दुख का अनुभव यह करता
ईश्वर से भिन्न ये जीव नहीं, पर पूर्ण रूप ईश्वर ही है
हो लिप्त विकारों से आत्मा, विपरीत धर्म ही जीव का है
जप तप योगादिक साधन से, जब मुक्त अविद्या से होए
तब स्वस्वरूप का अनुभव हो, यह जीव मुक्त तब हो जाए

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