निहोरा
काहे ऐसे भये कठोर
टेरत टेरत भई वयस अब, तक्यो न मेरी ओर
कहा करों, कोउ पंथ न दीखत, साधन भी नहिं और
पै तुम बिनु मेरे मनमोहन, दीखत और न ठौर
काहे अब स्वभाव निज भूले, करहुँ न करुना कोर
हूँ मैं दीन भिखारी प्यारे, तुम उदार-सिरमौर

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