कर्म-विपाक
करम गति टारे नाहिं टरे
सतवादी हरिचंद से राजा, नीच के नीर भरे
पाँच पांडु अरु कुंती-द्रोपदी हाड़ हिमालै गरे
जग्य कियो बलि लेण इंद्रासन, सो पाताल परे
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, विष से अमृत करे

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