धन्य गृहस्थाश्रम
क्यों धन्य गृहस्थाश्रम कहलाता
मानव जीवन के तीन लक्ष्य, धन, काम, धर्म वह पाता
सौमनस्य हो पति-पत्नी में, स्वर्ग बनाये घर को
परोपकार, परहित सेवा, कर्तव्य मिलादे हरि को
प्रभु का मंदिर समझे गृह को, भाव शुद्धता मन में
हरि-कीर्तन प्रातः सन्ध्या हो, व सदाचार जीवन में
पूजन एवं कृष्ण-कथा हो, साधु, सन्त सेवा हो
सभी तरह की परम शान्ति हो, प्रेम भाव सबसे हो
खान-पान परिशुद्ध रहे, हो अनासक्ति भोगों में
मात-पिता अरु पूज्य जनों प्रति, समुचित आदर मन में
वातावरण जहाँ ऐसा हो, स्वर्ग रूप घर होता
सुलभ वहाँ शाश्वत सुख सबको, वास प्रभु का होता 

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