Likhi Nahi Pathwat Hain Dwe Bol

विरह व्यथा
लिखि नहिं पठवत हैं, द्वै बोल
द्वै कौड़ी के कागद मसि कौ, लागत है बहु मोल
हम इहि पार, स्याम परले तट, बीच विरह कौ जोर
‘सूरदास’ प्रभु हमरे मिलन कौं, हिरदै कियौ कठोर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *