ज्ञान पर भक्ति की विजय
मथुरा से श्याम नहीं लौटे हैं, दुःखी सब ही ब्रज में
मात यशोदा बाबा नन्द को, लाला की याद आय मन में
मथुरा राजमहल में व्याकुल, रहें सदा ही राधाकान्त
रोक नहीं पाते अपने को रोते थे पाकर एकान्त
ब्रज बालाएँ डूब रहीं थीं, विरह वेदना में दिन रात
उद्धव के अतिरिक्त न कोई, जिसे कहे हरि मन की बात
मैया, बाबा, ब्रज वनिताएँ, दु:खी याद में सब मेरे
तुम्हीं योग्य हो जाओ ब्रज में, समझाना उनको प्यारे
उद्धव ने देखा वहाँ जाकर, कृष्ण-प्रेम विरही ब्रज को
ज्ञान की बात सुने नहीं कोई, समझाना बस अपने को 

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