हरि से प्रीति
‘मीराँ’ लागो रंग हरी, और न रँग की अटक परी
चूड़ो म्हाँरे तिलक अरु माला, सील बरत सिणगारो
और सिंगार म्हाँरे दाय न आवे, यो गुरू ज्ञान हमारो
कोई निंदो कोई बिंदो म्हे तो, गुण गोबिंद का गास्याँ
जिण मारग म्हाँरा साध पधारौ, उण मारग म्हे जास्याँ
चोरी न करस्याँ, जिव न सतास्याँ, काँइ करसी म्हारो कोई
गज से उतर के खर नहीं चढ्स्याँ, या तो बात न होई

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