रूप माधुरी
मेरे नयन निरखि सचु पावै
बलि बलि जाऊँ मुखारविंद पै, बन ते पुनि ब्रज आवै
गुंजाफल वनमाल मुकुटमनि, बेनु रसाल बजावे
कोटि किरन मुख तें जो प्रकाशित, शशि की प्रभा लजावै
नटवर रूप अनूप छबीलो, सबही के मन भावै
‘सूरदास’ प्रभु पवन मंदगति, विरहिन ताप नसावै

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