Mohi Kahat Jubati Sab Chor

चित चोर
मोहिं कहति जुवति सब चोर
खेलत कहूँ रहौं मैं बाहिर, चितै रहतिं सब मेरी ओर
बोलि लेहिं भीतर घर अपने, मुख चूमति भर लेति अँकोर
माखन हेरि देति अपने कर, कई विधि सौं करति निहोर
जहाँ मोहिं देखति तँहै टेरति, मैं नहिं जात दुहाई तोर
‘सूर’ स्याम हँसि कंठ लगायौ, वे तरुनी कहँ बालक मोर

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