शरणागति
मोपे किरपा करो गिरिधारी! मैं आई शरण तुम्हारी
मैं हूँ अभागिन भाग जगाओ, डूबती नैया पार लगाओ
दुखिया के हो तुम दुखहारी, कोई न जाने पीर हमारी
अपनों से भी हुई पराई, अपनी विपदा उन्हें सुनाई
सबने ही जब बात बनाई, रो रो कर के तुम्हें पुकारी
तुम्हरे बिन कोई सुने न मोरी, तुम हो स्वामी मैं हूँ चेरी
मत दूर करो ना देर करो, मैं तुमरे चरण में बलिहारी

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