विरह व्यथा
नैना भये अनाथ हमारे
मदनगुपाल यहाँ ते सजनी, सुनियत दूरि सिधारे
वै हरि जल हम मीन बापुरी, कैसे जियहिं नियारे
हम चातक चकोर श्यामल घन, बदन सुधा-निधि प्यारे
मधुबन बसत आस दरसन की, नैन जोई मग हारे
‘सूरदास’ ऐसे मनमोहन, मृतक हुते पुनि मारे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *