गोचारण
नंद को लाल चले गोचारन, शोभा कहत न आवे
अति फूली डोलत नंदरानी, मोतिन चौक पुरावे
विविध मूल्य के लै आभूषण, अपने सुत पहिरावे
आनँद में, भर गावत मंगल गीत सबहिं मन भावे
घर घर ते सब छाक लेत है, संग सखा सुखदाई
गौएँ हाँक आगे कर लीनी, पाछे मुरली बजाई
कुण्डल लाल कपोलन सुन्दर, वनमाला गल छाई
‘परमानन्द’ प्रभु मदनमोहन की सोभा बरनी न जाई 

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