श्रीमद्भागवत
प्रभु को प्रसन्न हम कर पाये
चैतन्य महाप्रभु की वाणी, श्री कृष्ण भक्ति मिल जाये
कोई प्रेम भक्ति के बिना उन्हें, जो अन्य मार्ग को अपनाये
सखि या गोपी भाव रहे, संभव है दर्शन मिल जाये
हम दीन निराश्रय बन करके, प्रभु प्रेमी-जन का संग करें
भगवद्भक्तों की पद-रज को, अपने माथे पर स्वतः धरें
यशुमति-नंदन श्री कृष्णचन्द्र, आराध्य परम एक मात्र यही
दुनिया के बंधन तोड़ सभी, हम वरण करें बस उनको ही
उत्कृष्ट ग्रन्थ श्रीमद्भागवत, सब शास्त्रों का है यही सार
हम पढ़ें, नित्य संकीर्तन हो, प्रभु भक्ति का उत्तम प्रकार

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