युगल से प्रीति
प्रीति पगी श्री लाड़िली, प्रीतम स्याम सुजान
देखन में दो रूप है, दोऊ एक ही प्रान
ललित लड़ैती लाड़िली, लालन नेह निधान
दोउ दोऊ के रंग रँगे, करहिं प्रीति प्रतिदान
रे मन भटके व्यर्थ ही, जुगल चरण कर राग
जिनहिं परसि ब्रजभूमि को, कन कन भयो प्रयाग
मिले जुगल की कृपा से, पावन प्रीति-प्रसाद
और न अब कछु चाह मन, गयो सकल अवसाद
मेरे प्यारे साँवरे, तुम कित रहे दुराय
आवहु मेरे लाड़िले! प्रान रहे अकुलाय

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