प्रबोधन
रे मन, गोविंद के ह्वै रहियै
विरत होय संसार में रहिये, जम की त्रास न सहियै
सुख, दुख कीरति भाग्य आपने, मिल जाये सो गहियै
‘सूरदास’ भगवंत-भजन करि, भवसागर तरि जइयै

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