श्री कृष्ण स्मरण
रे मन कृष्ण नाम जप ले
भटक रहा क्यों इधर उधर तू, कान्ह शरण गह ले
जनम मरण का चक्कर इससे, क्यों न मुक्त हो जाये
यह संसार स्वप्न के जैसा, फिर भी क्यों भरमाये
जिनको तू अपना है कहता, कोई भी नहीं तेरा
मनमोहन को हृदय बिठाले, चला चली जग फेरा

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