परब्रह्म श्रीकृष्ण
ऋषि मुनि सब देव पुकार रहे, श्रीकृष्ण हरे गोविन्द हरे
उन विश्वंद्य का संकीर्तन हो आर्तवाणि से दु:ख टरे
असुरों के अत्याचारों से, हो रहा घना था धर्म-नाश
सब देव गये गोलोक धाम, जो है प्रसिद्ध श्रीकृष्ण-वास
इक दृश्य अलौकिक वहाँ देख, आश्चर्य चकित सब देव हुए
नारायण, नरसिंह, राम, हरि, श्री कृष्ण-तेज में समा गए
ऐश्वर्य, धर्म, वैराग्य, ज्ञान अरु श्री यश ये जो छः मग हैं
सिद्धियाँ अष्ट, लीला व कृपा, कुल सौलह कला उन्हीं में हैं
है दुर्गम जिनका चरित-सिंधु, उनको मैं सादर करूँ नमन
उनके चरणों में शरणागत, काटो मेरे माया-बंधन

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