होली
सखि, आयो फागुन मास, चलों हम खेलें होरी
गोपी-जन को कहें प्रेम से राधा गोरी
इतने में ज्यों दिखे श्याम, गोपियाँ दौड़ी आई
कहाँ छिपे थे प्यारे अब तक कृष्ण कन्हाई
घेर श्याम को होरी की फिर धूम मचाई
सब मिलकर डाले रंग उन्हीं पर, सुधि बिसराई
मौका पा पकड़े मोहन राधा रानी को
तत्काल ही डाला रंग गुलाल, नहीं छोड़ा उनको
आनन्द मग्न सब हुए, राधिका मुरलीधर भी
यह जोड़ी कितनी प्यारी, मुग्ध हैं गोपीजन भी

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