दिव्य सौन्दर्य
सखी री सुन्दरता को रंग
छिन-छिन माँहि परत छबि औरे, कमल नयन के अंग
स्याम सुभग के ऊपर वारौं, आली, कोटि अनंग
‘सूरदास’ कछु कहत न आवै, गिरा भई अति पंग

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