प्रीति माधुर्य
सखि, ये नैना बहुत बुरे
तब सौं भये पराये हरि सो, जबलौं जाई जुरे
मोहन के रस बस ह्वै डोलत, जाये न तनिक दुरे
मेरी सीख प्रीति सब छाँड़ी, ऐसे ये निगुरे
खीझ्यौ बरज्यौ पर ये नाहीं, हठ सो तनिक मुरे
सुधा भरे देखत कमलन से, विष के बुझे छुरे  

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