श्रीकृष्ण-भक्ति
श्री कृष्ण कहते रहो, अमृत-मूर्ति अनूप
श्रुति शास्त्र का मधुर फल, रसमय भक्ति स्वरूप
कर चिन्तन श्रीकृष्ण का, लीलादिक का ध्यान
अमृत ही अमृत झरे, करुणा प्रेम-निधान
कण-कण में जहाँ व्याप्त है, श्यामा श्याम स्वरूप
उस वृन्दावन धाम की, शोभा अमित अनूप
जप-तप-संयम, दान, व्रत, साधन विविध प्रकार
मुरलीधर से प्रेम ही, निगमाम का सार
जय जसुमति के लाड़ले, जय ब्रजेश नन्दलाल
वासुदेव देवकी-तनय, बालकृष्ण गोपाल
जो सुलभ्य प्रारब्ध से, उसमें कर सन्तोष
तृषा त्याग निश दिन करो, कृष्ण नाम का घोष
नाम स्मरण लवलीन हो, करलो मन को शुद्ध
अन्तकाल त्रिदोष से, कण्ठ होय अवरुद्ध
पद-सरोज में श्याम के, मन भँवरा तज आन
रहो अभी से कैद हो, अन्त समय नहीं भान
प्रेम कृष्ण का रूप है, मत कर जग से प्रेम
कृष्ण भक्ति में मन लगा, वही करेंगे क्षेम
भक्ति के आरम्भ का, पहला पद हरि-नाम
मधुसूदन श्रीकृष्ण को, भज मन आठों याम
लौकिक सुख को त्याग के, भजो सच्चिदानन्द
गोविंद के गुण-गान से, मिट जाये हर द्वन्द
श्रीराधा की भक्ति में, निहित प्यास का रूप
आदि अन्त इसमें नहीं, आनँद अमित अनूप

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