मग्न मीरा
तेरा कोइ नहिं रोकनहार, मगन होय मीराँ चली
लाज सरम कुल की मरजादा, सिर से दूर करी
मानापमान दोऊ घर पटके, निकसी हूँ ज्ञान गली
ऊँची अटरिया लाल किवड़िया, निरगुण सेज बिछी
पचरंगी झालर सुभ सोहे, फूलन फूल कली
बाजूबंद कठूला सोहे, माँग सिंदुर भरी
पूजन थाल हाथ में लीन्हा, सोभा अधिक भली
सेज सुखमणा’मीराँ’ सोवे, सुभ है आज घरी
तुम जावो राणा घर अपणे, मेरी तेरी नाहिं सरी

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