चीर हरण
था माघ मास ब्रज बालाएँ, यमुना जल में सब स्नान करें
होता था ऊषाकाल जभी, श्रीकृष्ण चरित गुणगान करें
जल क्रीडा में थी मग्न सभी, तत्काल श्याम वहाँ पहुँच गये
अभिलाषा जो उनके मन में, सर्वेश्वर उसको जान गये
ले वस्त्र उठा बालाओं के, वे तरु कदम्ब पर चढ़े तभी
वे बोले सुन्दरियों से आओ ले जाओ अपने वस्त्र सभी
वे हुई प्रेम से सराबोर बोली-प्यारे दो वस्त्र हमें
जाड़े के मारे ठिठुर रहीं, सच सच कहती गोविन्द तुम्हें
निर्वसन स्नान यमुना जल में, जो किया गोपियाँ दोष वही
प्रणाम करो तुम हाथ जोड़, हरि बोले फिर लो वस्त्र यहीं
कर नमस्कार बालाओं ने, अपने वस्त्रों को पहन लिया
बोले मोहन तुमने सखियों, सब कुछ ही अर्पण मुझे किया
वरदान दिया उनको सबको तब करना क्रीड़ा मेरे सँग में
उनके संग विहार किया, आगामी शरद् रात्रि में 

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