दरस लालसा
थारा दरसन किस विध पाऊँ साँवरिया, औगुण की मैं खान
बाल अवस्था खेल गँवाई, तरुणाई अभिमान
यूँ ही जीवन खोय दियो मैं, डूब्यो झूठी शान
लग्यो रह्यो स्वारथ में निस दिन, सुख वैभव की बान
मात-पिता गुरु से मुख मोड्यो, कियो नहीं सनमान
साँच झूठ कर माया जोड़ी थारो कियो न गान
साधू-संगत छोड़ कुसंगत करी, रह्यो नहीं भान
दुर्लभ देह मनुज की पाई, कर न सक्यो कल्यान
पतित उधारन नाम तिहारो, दीजो प्रभु वरदान
साधन और नहीं मैं जाणूँ, धरूँ तिहारो ध्यान

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *