मोहन से योग
ऊधौ! कहा सिखावौ जोग
हमरो नित्य-जोग प्रियतम सौं, होय न पलक बियोग
वे ही हमरे मन मति सर्वस, वे ही जीवन प्रान
वे ही अंग-अंग में छाये, हमको इसका भान

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