साँवरिया श्याम
विलग न मानों ऊधो प्यारे
वह मथुरा काजर की कोठरि जे आवत ते कारे
तुम कारे सुफलत सुत कारे, कारे मधुप भँवारे
कमलनयन की कौन चलावै, साबहिनि ते अनियारे
तातें स्याम भई कालिन्दी, ‘सूर’ स्याम गुन न्यारे

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