कीर्तन महिमा
कीर्तन से मन:शांति पाते
प्रभु के स्वरूप का चिन्तन हो, आनन्दरूप मन में आते
अनुभूति प्रेम की हो जाये, तो भक्ति स्वतः मिल जाती है
अपनापन होने से ही तो, माँ हमको प्यारी लगती है
तन्मयता से जब कीर्तन हो, तो हरि से लौ लग जायेगी
सब छुट जायेगा राग द्वेष, प्रभु-प्रीति ही मन में छायेगी 

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