Mat Kar Itana Pyar Tu Tan Se

देह से प्रेम
मत कर इतना प्यार तू तन से, नहीं रहेगा तेरा
बहुत सँवारा इत्र लगाया, और कहे यह मेरा
बढ़िया भोजन नित्य कराया, वस्त्रों का अंबार
बचपन, यौवन बीत गया तब, उतरा मद का भार
पति, पत्नी-बच्चों तक सीमित था तेरा संसार
स्वारथ के साथी जिन पर ही, लूटा रहा सब प्यार
सब कुछ तो नश्वर इस जग में, कहता काल पुकार
तन, धन छोड़ा सभी यहाँ पर, पहुँचा यम के द्वार

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