पूजन-अर्चन
प्रभु की उपासना नित्य करे
जो सत्य अलौकिक देव-भाव, जीवन में उनको यहीं भरे
मन बुद्धि को जो सहज ही में, श्री हरि की प्रीति प्रदान करे
भौतिक उपचारों के द्वारा, यह संभव होता निश्चित ही
पूजन होए श्रद्धापूर्वक, अनिष्ट मिटे सारे तब ही
पूजा का समापन आरती से, हरि भजन कीर्तन भी होए
तन्मयता से जब कीर्तन हो, प्रभु की अनुकम्पा को पाए 

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