हरि-भक्ति
प्रभु से जो सच्चा प्रेम करे, भव-सागर को तर जाते हैं
हरिकथा कीर्तन भक्ति करे, अर्पण कर दे सर्वस्व उन्हें
हम एक-निष्ठ उनके प्रति हों, प्रभु परम मित्र हो जाते हैं
लाक्षागृह हो या चीर-हरण, या युद्ध महाभारत का हो
पाण्डव ने उनसे प्रेम किया, वे उनका काम बनाते है
हो सख्य-भाव उनसे अपना, करुणा-निधि उसे निभायेंगे
सुख-दुख की बात कहें उनसे, वे ही विपदा को हरते हैं  

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