धर्म निष्ठा
सबसे बड़ा धर्म का बल है
वह पूजनीय जिसको यह बल, जीवन उसका ही सार्थक है
ऐश्वर्य, बुद्धि, विद्या, धन का, बल होता प्रायः लोगों को
चाहे शक्तिमान या सुन्दर हो, होता है अहंकार उसको
इन सबसे श्रेष्ठ धर्म का बल, भवसागर से जो पार करे
जिस ओर रहे भगवान् कृष्ण, निश्चय ही उनको विजय वरे 
संस्कारित जीवनसब भाँति श्रेष्ठ यह जीवन हो, आवश्यकीय सत्कार्य करें
ये धर्म, अर्थ अरु काम, मोक्ष, चारों को यथा विधि प्राप्त करें
परिवार, साधु के हित में ही, जीवन में धनोपार्जन हो
अनुचित उपाय से धन पाना, दुष्कर्म बड़ा जो कभी न हो
हम अर्थ, काम के सेवन में, मर्यादित हों श्रेयस्कर है
नश्वर है दोनों अतः धर्म का, मार्ग सनातन हितकर है
परहित सेवामय जीवन हो, मनुष्य मात्र का धर्म यही
दधीचि ने दे दी अस्थियाँ भी, प्रतिमान क्या ऐसा और कहीं
हम आत्मज्ञान को प्राप्त करें, तो मोक्ष हमें उपलब्ध यहीं
आत्मा परमात्मा पृथक नहीं, सच्चिदानन्द हैं भेद नहीं

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