राम का माधुर्य
कब देखौंगी नयन वह मधुर मूरति
राजिव दल नयन, कोमल-कृपा अयन, काम बहु छबि अंगनि दूरति
सिर पर जटा कलाप पानि सायक चाप उर रुचिर वनमाल मूरति
‘तुलसिदास’ रघुबीर की सोभा सुमिरि, भई मगन, नहीं तन की सूरति
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Jogiya Kab Re Miloge Aai
मिलने की आतुरता
जोगिया, कब रे मिलोगे आई
तेरे कारण जोग लियो है, घर-घर अलख जगाई
दिवस न भूख, रैन नहिं निंदियाँ, तुम बिन कछु न सुहाई
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, मिल कर तपन बुझाई
Ab Tum Kab Simaroge Ram
हरिनाम स्मरण
अब तुम कब सुमरो गे राम, जिवड़ा दो दिन का मेहमान
गरभापन में हाथ जुड़ाया, निकल हुआ बेइमान
बालापन तो खेल गुमाया, तरूनापन में काम
बूढ़ेपन में काँपन लागा, निकल गया अरमान
झूठी काया झूठी माया, आखिर मौत निदान
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, क्यों करता अभिमान
Kab Aaoge Krishna Murare
प्रतीक्षा
कब आओगे कृष्ण मुरारे, आस में बैठी पंथ निहारूँ
सूरज डूबा साँझ भी आई, दर पे खड़ी हूँ आस लगाये
रात हुई और तारे निकले, कब आओगे कृष्ण मुरारे
आधी रात सुनसान गली है, मैं हूँ अकेली गगन में तारे
जागा सूरज सोए तारे, कब आओगे कृष्ण मुरारे
भोर भई जग सारा जागा, हुआ प्रकाश अँधेरा भागा
देर करो मत मोहन प्यारे, कब आओगे कृष्ण मुरारे
Prabho Vah Kab Din Aayega
प्रतीक्षा
प्रभो, वह कब दिन आयेगा
होगा जब रोमांच, हृदय गद्गद् हो जायेगा
कृष्ण कृष्ण उच्चारण होगा, प्रेमाश्रु नयनों में
विस्मृत होगी सारी दुनिया, मग्न पाद-पद्मों में
रूप-माधुरी पान करूँगा, बिठलाऊँ हृदय में
मिट जायेगा तमस् अन्ततः, लीन होउ भक्ति में