प्रेमानुभूति
अब तो पगट भई जग जानी
वा मोहन सों प्रीति निरंतर, क्यों निबहेगी छानी
कहा करौं वह सुंदर मूरति, नयननि माँझि समानी
निकसत नाहिं बहुत पचिहारी, रोम-रोम उरझानी
अब कैसे निर्वारि जाति है, मिल्यो दूध ज्यौं पानी
‘सूरदास’ प्रभु अंतरजामी, उर अंतर की जानी
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Main To Sanware Ke Rang Rachi
प्रगाढ़ प्रीति
मैं तो साँवरे के रँग राची
साजि सिंगार बाँधि पग घुँघरू, लोक-लाज तजि नाची
गई कुमति लई साधु की संगति, स्याम प्रीत जग साँची
गाय गाय हरि के गुण निस दिन, काल-ब्याल सूँ बाँची
स्याम बिना जग खारो लागत, और बात सब काँची
‘मीराँ’ गिरिधर-नटनागर वर, भगति रसीली जाँची
Ab To Sanjh Bit Rahi Shyam
होली
अब तो साँझ बीत रही श्याम, छोड़ो बहियाँ मोरी
तुम ठहरे ब्रजराज कुँवरजी, हम ग्वालिन अति भोरी
आनंद मगन कहूँ मैं मोहन,अब तो जाऊँ पौरी
लाज बचेगी मोरी
सास, ननद के चुपके छाने, तुम संग खेली होरी
अँगुली पकरत पहुँचो पकरयो और करी बरजोरी
हम हैं ब्रज की छोरी
मीठी-मीठी तान बजाकर, लेन सखिन चित चोरी
‘सूरदास’ प्रभु कुँवर कन्हाई, मुख लपटावत रोरी
बोलत हो हो होरी
Rana Jimhe To Govind Ka Gun Gasyan
भक्ति भाव
राणाजी! म्हे तो गोविन्द का गुण गास्याँ
चरणामृत को नेम हमारे, नित उठ दरसण जास्याँ
हरि मंदिर में निरत करास्याँ, घूँघरिया धमकास्याँ
राम नाम का झाँझ चलास्याँ, भव सागर तर जास्याँ
यह संसार बाड़ का काँटा, सो संगत नहिं करस्याँ
‘मीराँ’ कहे प्रभु गिरिधर नागर, निरख परख गुण गास्याँ
Jo Ham Bhale Bure To Tere
शरणागति
जो हम भले-बुरे तो तेरे
तुमहिं हमारी लाज बड़ाई, विनती सुनु प्रभु मेरे
सब तजि तव सरनागत आयो, निज कर चरन गहे रे
तव प्रताप बल बदत न काहू, निडर भये घर चेरे
और देव सब रंक भिखारी, त्यागे बहुत अनेरे
‘सूरदास’ प्रभु तुम्हरि कृपा ते, पाये सुख जु घनेरे
Rana Ji Ruthe To Mharo Kai Karsi
गोविंद का गान
राणाजी रूठे तो म्हारो काई करसी, मैं तो गोविन्द का गुण गास्याँ
राणाजी भले ही वाँको देश रखासी, मैं तो हरि रूठ्याँ कठे जास्याँ
लोक लाज की काँण न राखाँ मैं तो हरि-कीर्तन करास्याँ
हरि-मंदिर में निरत करस्याँ, मैं तो घुँघरिया घमकास्याँ
चरणामृत को नेम हमारो, मैं तो नित उठ दरसण जास्याँ
‘मीराँ’ के प्रभु गिरिधर नागर, मैं तो भवसागर तिर जास्याँ
Main To Ta Din Kajara Dehon
श्री कृष्ण से प्रीति
मैं तो ता दिन कजरा दैहौं
जा दिन नंदनँदन के नैननि, अपने नैन मिलैहौं
सुन री सखी, यही जिय मेरे, भूलि न और चितैहौं
अब हठ ‘सूर’ यहै व्रत मेरौ विष खाकरि मरि जैहौ
Shyam Main To Thare Rang Rati
श्याम से प्रीति
स्याम मैं तो थाँरे रँग राती
औराँ के पिय परदेस बसत हैं, लिख लिख भेजे पाती
मेरा पिया मेरे हिरदे बसत है, याद करूँ दिन राती
भगवा चोला पहिर सखीरी, मैं झुरमट रमवा जाती
झुरमुट मे मोहिं मोहन मिलिया, उण से नहिं सरमाती
और सखी मद पी पी माती, बिन पिये मैं मदमाती
प्रेम भट्ठी को मद पीयो ‘मीराँ’, छकी फिरै दिन राती
Maiya Main To Chand Khilona
कान्हा की हठ
मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं
जैहौं, लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं
सुरभी कौ पे पान न करिहौं, बेनी सिर न गुहैहौं
ह्वैहौं पूत नंद बाबा कौ, तेरौ सुत न कहैहौं
आगै आउ, बात सुनि मेरी, बलदेवहि न जनैहौं
हँसि समुझावति, कहति जसोमति, नई दुल्हनिया दैहौं
तेरी सौं, मेरी सुनि मैया, अबहिं बियाहन जैहौं
‘सूरदास’ ह्वै कुटिल बराती, गीत सुमंगल गैहौं
Ham To Ek Hi Kar Ke Mana
आत्म ज्ञान
हम तो एक ही कर के माना
दोऊ कहै ताके दुविधा है, जिन हरि नाम न जाना
एक ही पवन एक ही पानी, आतम सब में समाना
एक माटी के लाख घड़े है, एक ही तत्व बखाना
माया देख के व्यर्थ भुलाना, काहे करे अभिमाना
कहे ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, हम हरि हाथ बिकाना