Sundar Shyam Piya Ki Jori

राधा-कृष्ण माधुरी सुन्दर स्याम पिया की जोरी रोम रोम सुंदरता निरखत, आनँद उमँग बह्योरी वे मधुकर ए कुंज कली, वे चतुर एहू नहिं भोरी प्रीति परस्पर करि दोउ सुख, बात जतन की जोरी वृंदावन वे, सिसु तमाल ए, कनक लता सी गोरी ‘सूर’ किसोर नवल नागर ए, नागरि नवल-किसोरी

Hari Kilkat Jasumati Ki Kaniyan

माँ का स्नेह हरि किलकत जसुमति की कनियाँ मुख में तीनि लोक दिखराए, चकित भई नँद-रनियाँ घर-घर आशीर्वाद दिवावति, बाँधति गरै बँधनियाँ ‘सूर’ स्याम की अद्भुत लीला, नहिं जानत मुनि जनियाँ

Ankhiyan Hari Darsan Ki Pyasi

वियोग अँखिया हरि दरसन की प्यासी देख्यो चाहत कमलनैन को, निसिदिन रहत उदासी आयो ऊधौ फिरि गये आँगन, डारि गये गल फाँसी केसरि तिलक मोतिन की माला, वृन्दावन को वासी काहु के मनकी कोउ न जानत, लोगन के मन हाँसी ‘सूरदास’ प्रभु तुमरे दरस बिन, लेहौं करवत कासी

Karat Shrangar Maiya Man Bhavat

श्रृंगार करत श्रृंगार मैया मन भावत शीतल जल तातो करि राख्यो, ले लालन को बैठ न्हवावत अंग अँगोछ चौकी बैठारत, प्रथमही ले तनिया पहरावत देखो लाल और सब बालक, घर-घर ते कैसे बन आवत पहर्यो लाल झँगा अति सुंदर, आँख आँज के तिलक बनावत ‘सूरदास’, प्रभु खेलत आँगन, लेत बलैंया मोद बढ़ावत

Khelan Ko Hari Duri Gayo Ri

यशोदा की चिन्ता खेलन कौं हरि दूरि गयौ री संग-संग धावत डोलत हैं, कह धौं बहुत अबेर भयौ री पलक ओट भावत नहिं मोकौं, कहा कहौं तोहि बात नंदहिं तात-तात कहि बोलत, मोहि कहत है मात इतनो कहत स्याम-घन आये, ग्वाल सखा सब चीन्हे दौरि जाइ उर लाइ ‘सूर’ प्रभु, हरषि जसोदा लीन्हे

Jagahu Jagahu Nand Kumar

प्रभाती जागहु जागहु नंद-कुमार रवि बहु चढ्यो रैन सब निघटी, उचटे सकल किवार ग्वाल-बाल सब खड़े द्वार पै, उठ मेरे प्रानअधार घर घर गोपी दही बिलोवै, कर कंकन झंकार साँझ दुहां तुम कह्यो गाईकौं, तामें होति अबार ‘सूरदास’ प्रभु उठे तुरत ही, लीला अगम अपार

Tum Pe Kon Dehave Gaiya

गौ-दोहन तुम पै कौन दुहावै गैया लिये रहत कर कनक दोहनी, बैठत हो अध पैया इत चितवत उत धार चलावत, एहि सखियो है मैया ‘सूरदास’ प्रभु झगरो सीख्यौ, गोपिन चित्त चुरैया

Nisi Din Barsat Nain Hamare

विरह व्यथा निसि दिन बरसत नैन हमारे सदा रहत पावस-ऋतु हम पर, जब तें श्याम सिधारे अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे कचुंकि-पट सूखत नहीं कबहूँ, उर बिच बहत पनारे आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे ‘सूरदास’ अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे

Bal Krishna Kahe Maiya Maiya

माँ का स्नेह बालकृष्ण कहे मैया मैया नन्द महर सौं बाबा-बाबा, अरु हलधर सौं भैया ऊँचे चढ़ि-चढ़ि कहति जसोदा, लै लै नाम कन्हैया दूर खेलन जनि जाहु ललारे, मारेगी कोउ गैया गोपी ग्वाल करत कौतूहल, घर-घर बजत बधैया ‘सूरदास’ प्रभु तुम्हरे दरस को, चरणनि की बलि जैया

Mero Mai Hathi Ye Bal Govinda

हठी बाल कृष्ण मेरौ माई हठी ये बाल-गोबिंदा अपने कर गहि गगन बतावत, खेलन माँगे चंदा बासन मैं जल धर्यो जसोदा, हरि कौं आनि दिखावे रूदन करत ढूँढत नहिं पावत, चंद धरनि क्यों आवे मधु मेवा पकवान मिठाई, माँगि लेहु मेरे छौना चकई डोरी पाट के लटकन, लेहु मेरे लाल खिलौना संत उबारन असुर सँहारन, […]