शरणागति
तू दयालु, दीन हौं, तू दानि, हौं भिखारी
हौं प्रसिद्ध पातकी, तू पाप – पुंज – हारी
नाथ तू अनाथ को, अनाथ कौन मोसो
मो समान आरत नहिं, आरतहर तोसो
ब्रह्म तू, हौं जीव, तू ठाकुर, हौं चेरो
तात, मात, गुरु, सखा तू, सब बिधि हितू मेरो
तोहि मोहिं नाते अनेक, मानियै जो भावै
ज्यों – त्यों ‘तुलसी’, कृपालु! चरन – सरन पावै
Category: General
Gunghat Ka Pat Khol Re Toko Peev Milenge
अज्ञान निवृत्ति
घूँघट का पट खोल रे, तोहे पिया मिलेंगे
घट घट में वह साईं रमता, कटुक वचन मत बोल रे
धन जोबन को गरब न कीजे, झूठा पचरंग चोल रे
सुन्न महल में दीप जलाले, आसन सों मत डोल रे
जाग जुगुत सो रंग-महल में, पिय पायो अनमोल रे
कहे ‘कबीर’ अनन्द भयो है, बाजत अणहद ढोल रे
Man Ram Sumar Pachtayega
सत्संग
मन राम सुमर पछतायेगा
पापी जियरा लोभ करत है, आज काल उठ जायेगा
लालच में सब जनम गँवायो, माया भरम लुभायेगा
धन जीवन का लोभ न करिये, साथ न कुछ भी जायेगा
धरम राज जब लेखा माँगे, क्या मुख उन्हें बतायेगा
कहत ‘कबीर’ सुनो भाई साधो, सत्संग से तर जायेगा
Are Man Kar Prabhu Par Vishvas
प्रभु का भरोसा
अरे मन कर प्रभु पर विश्वास
भटक रहा क्यों इधर-उधर तूँ, झूठे सुख की आस
सुन्दर देह सुहावनि नारी, सब विधि भोग-विलास
क्या पाया घरबार पुत्र से, मिटी न यम की त्रास
क्षण-भङ्गुर सब भोग निरंतर, बने काल के ग्रास
मिले परम सुख, घटे कभी नहिं, जिनके मन विश्वास
Ab Main Koun Upay Karu
असमंजस
अब मैं कौन उपाय करूँ
जेहि बिधि मनको संसय छूटै, भव-निधि पार करूँ
जनम पाय कछु भलो न कीन्हों, ताते अधिक डरूँ
गुरुमत सुन के ज्ञान न उपजौ, पसुवत उदर भरूँ
कह ‘नानक’ प्रभु बिरद पिछानौ, तब मैं पतित तरूँ
Uddeshya Purna Yah Jiwan Ho
जीवन का उद्देश्य
उद्देश्यपूर्ण यह जीवन हो
लक्ष्य के प्रकार पर ही निर्भर, मानव स्वरूप जैसा भी हो
जो सुख की खोज में भटक रहे, प्रायः दुःख ही मिलता उनको
हो जाय समर्पित यह जीवन, एकमात्र प्रभु के पाने को
वे अन्दर ही हैं दूर नहीं, प्रभु की इच्छा सर्वोपरि हो
सौंप दे समस्याएँ भी उनको, निश्चित प्रशांत तब मन भी हो
नारायण जो अच्युत, अनन्त, भक्ति से उनको प्राप्त करें
वह दिव्य ज्योति व दिव्य प्रेम, जो अविचल शांति प्रदान करें
Gopi Vallabh Ke Darshan Main
प्रीति-माधुरी
गोपीवल्लभ के दर्शन में, मिलता सुख वैसा कहीं नहीं
गोपीजन का था प्रेम दिव्य, प्रेमानुराग की सरित् बही
दण्डकवन के ऋषि मुनि ही तो, आकर्षित थे राघव प्रति जो
वे बनी गोपियाँ, पूर्ण हुर्इं, अभिलाषा थी इनके मन जो
वे देह दशा को भूल गर्इं, हृदय में कोई और न था
श्रीकृष्णचन्द्र से प्रेम किया, वह तो आनन्द अद्वितीय था
जब सभी इन्द्रियों के द्वारा, भक्ति रस का ही पान करें
स्थिति प्रेम की अकथनीय, गोपी जिसमें निशि दिन विहरें
Jiwan Ko Yagya Banaye Ham
यज्ञ
जीवन को यज्ञ बनायें हम
निष्काम भाव से ईश्वर को, जब कर्म समर्पित हो जाते
तो अहं वासना जल जाते, मुक्ति का दान वही देते
हम हवन कुण्ड में समिधा से अग्नि को प्रज्वलित करते
आहुति दे घृत वस्तु की, वेदों में यज्ञ इसे कहते
जब प्राण बचाने परेवा का, राजा शिवि जो अपने तन का
सब मांस भेंट ही कर देते, यह भूत यज्ञ अद्भुत उनका
कई दिन से भूखे रंतिदेव, परिवार सहित जब अतिथि को
सारा भोजन अर्पित करते, भूखा रखकर वे अपने को
दधीचि महर्षि ने निज तन की, दे दी थी अस्थियाँ देवों को
सेवा पथ का यह श्रेष्ठ रूप, गीता में यज्ञ कहे इसको
परहित में जो शुभ कर्म करे अकर्म वही कहलाते हैं
परमार्थ का जो भी कर्म करें, यज्ञ स्वरूप हो जाते हैं
Tulsi Mira Sur Kabir
भक्त कवि
तुलसी मीरा सूर कबीर
कण्ठहार जन जन के चारों, हर लेते तन मन की पीर
रामचरित के तुलसी गायक, कृष्ण भक्ति में सूर अधीर
मीराबाई कृष्ण विरहिणी, कबीर देते ज्ञान गँभीर
भक्ति, ज्ञान अरु कर्म समन्वय तुलसी की रामायण में
बालकृष्ण की लीलाओं का भाव सूर के गीतों में
गिरिधारी के दर्शन पाने मीरा के नयनों में नीर
नश्वर यह संसार बताये, माया का सब खेल कबीर
रामकृष्ण पद सुनें सुनायें, दूर करे तामस मन का
कर्म ज्ञान की गाथाओं से, हो उद्धार सभी जन का
Narayan Ka Nit Nam Japo
कीर्तन महिमा
नारायण का नित नाम जपो, हृदय से मंगलकारी
श्री राम कृष्ण हरि नारायण एक ही स्वरूप संकट हारी
है रामबाण औषधि है सब रोगों का जो शमन करें
प्रभु कीर्तन हो तन्मय हो कर सब चिंताओं को दूर करें
कलि-काल में साधन बड़ा यही हम जपे प्रभु का नाम नित्य
परिवार सहित संकीर्तन हो, वे करुणा सागर शांतिधाम